नालंदा और मगध के बौद्ध कालीन इतिहास और पुरातात्विक साक्ष्यों की खोज में दिलो - जान से लगे दीपक आनंद ने राजगीर की पहाडियों में प्राक- ऐतिहासिक काल की गुफा भित्ती चित्र को खोजा है.इस खोज की मुक्कम्मल छान बीन और इसके निहितार्थों पर विचार विमर्श जारी है. अगर इस भित्ती चित्र के बारे में प्रारंभिक -अनुमान ,विज्ञान और तर्क की कसौटी पर खरे उतरे तो यह मगध की ज्ञात ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को भगवान् बुद्ध और चक्रवर्ती अशोक से कई हजारों साल पीछे धकेल देगा. इस खोज के लिए हम दीपक आनंद की काबिले तारीफ़ निष्ठा और लगन को सलाम करते हैं.
इस खोज की विस्तृत खबर ( हिंदी) पटना संसकरण में २६-०हिन्दुस्तान ६-०९ में हैं . साभार हिन्दुस्तान , प्रकाशित खबर का लिंक यहाँ दिया जा रहा है.
http://www.hindustandainik.com/news/2031_2262101,0060.htm
पूरापाषाण कालीन इस भित्ती चित्र से सम्बंधित खबर ,चित्र सहित दैनिक जागरण , पटना में भी २६-०६-०९ को प्रकाशित हुयी है . प्रस्तुत है दैनिक जागरण से साभार ,समाचार अंश .http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_5574638.html
राजगीर के जंगलों में गुफाओं की श्रृंखला मिली
Jun 25, 09:35 pm
नालंदा (बिहारशरीफ) । पुरातत्व व कल्चरल टूरिज्म से जुडे़ लोगों के लिए अच्छी खबर है। राजगीर की पहाड़ी में नालंदा महाविहार से जुडे़ शोधकर्ताओं ने गुफाओं के श्रृंखला की खोज की है, जिसके 10,000 से 40,000 वर्ष पुराने होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। इन गुफाओं में एक कलाकृति भी मिली है, जिसकी डेटिंग अभी तय नहीं की गयी है। नव नालंदा महाविहार से संबद्ध दीपक आनंद ने अपने सहयोगियों के साथ राजगीर-गया मार्ग पर स्थित पहाड़ियों में इसकी खोज की है। हालांकि इस रहस्यमय गुफा के सही लोकेशन की जानकारी आम नहीं की गयी है। जिसे सुरक्षा कारणों से जोड़ा जा रहा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर समय रहते इसके संरक्षण की दिशा में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग सजग नहीं होगा तो इसके नष्ट कर दिये जाने का भी खतरा है। वैसे नव नालंदा महाविहार के निदेशक रवीन्द्र पंथ ने इसकी सूचना भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को भेजी है। जब तक उसकी टीम यहां आकर सर्वे नहीं कर लेती है, तब तक लोकेशन को गुप्त रखा गया है। खोजी दल के सदस्य दीपक बताते है कि इन स्थलों से कुछ पत्थर निर्मित भी मिले है। पत्थर पर उकेरी गयी कलाकृति के बारे में उन्होंने बताया कि ये हेमाटाइट पत्थर से घिसकर बनायी गयी कला है। जिसे 'पैल्यू' कहा जाता है। 'पैल्यू' कला प्री-हिस्टोरिक काल में कई बार मिली है। वैसे इस कलाकृति के बारे में विशेष जानकारी एएसआई ही दे सकती है। यह स्थान घने जंगल में खुली अवस्था में है। जो वर्षो से मौसमी मार को झेलता आया है। इन साइटों की खोज के विषय में पूछे जाने पर दीपक बताते है कि चीनी यात्री ह्वेंनसांग ने नालंदा जिले में कुल 36 साइटों का उल्लेख किया है। जिसमें अभी भी लगभग एक दर्जन साइटों की पहचान भी नहीं की जा सकी है। इनमें कल्पिनाका स्तूप संख्या 33 व 34, कुलिका की स्तूप संख्या 31 व 32 व इसके अलावा राजगीर फोर्ट के इर्द-गिर्द भी कई स्तूप है। जिसकी खोज आज भी अधूरी है। इन्हीं साइटों के खोज के क्रम में उक्त गुफाओं की श्रृंखला व कलाकृति मिली है। इस उपलब्धि से खोजी दल काफी उत्साहित है। दल का मानना है कि अगर पुरातत्व विभाग दिलचस्पी लेते हुए इसकी सही-सही डेटिंग व मैपिंग करे तो यह क्षेत्र निश्चित तौर पर कल्चरल टूरिज्म व कम्यूनिटी टूरिज्म को बढ़ावा दे सकता है। भ्रमण के लिए अच्छा साइट भी बन सकता है। इससे न केवल स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा बल्कि पर्यटन का भी विकास होगा।"
इस खोज की विस्तृत खबर ( हिंदी) पटना संसकरण में २६-०हिन्दुस्तान ६-०९ में हैं . साभार हिन्दुस्तान , प्रकाशित खबर का लिंक यहाँ दिया जा रहा है.
http://www.hindustandainik.com/news/2031_2262101,0060.htm
पूरापाषाण कालीन इस भित्ती चित्र से सम्बंधित खबर ,चित्र सहित दैनिक जागरण , पटना में भी २६-०६-०९ को प्रकाशित हुयी है . प्रस्तुत है दैनिक जागरण से साभार ,समाचार अंश .http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_5574638.html
राजगीर के जंगलों में गुफाओं की श्रृंखला मिली
Jun 25, 09:35 pm
नालंदा (बिहारशरीफ) । पुरातत्व व कल्चरल टूरिज्म से जुडे़ लोगों के लिए अच्छी खबर है। राजगीर की पहाड़ी में नालंदा महाविहार से जुडे़ शोधकर्ताओं ने गुफाओं के श्रृंखला की खोज की है, जिसके 10,000 से 40,000 वर्ष पुराने होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। इन गुफाओं में एक कलाकृति भी मिली है, जिसकी डेटिंग अभी तय नहीं की गयी है। नव नालंदा महाविहार से संबद्ध दीपक आनंद ने अपने सहयोगियों के साथ राजगीर-गया मार्ग पर स्थित पहाड़ियों में इसकी खोज की है। हालांकि इस रहस्यमय गुफा के सही लोकेशन की जानकारी आम नहीं की गयी है। जिसे सुरक्षा कारणों से जोड़ा जा रहा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर समय रहते इसके संरक्षण की दिशा में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग सजग नहीं होगा तो इसके नष्ट कर दिये जाने का भी खतरा है। वैसे नव नालंदा महाविहार के निदेशक रवीन्द्र पंथ ने इसकी सूचना भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को भेजी है। जब तक उसकी टीम यहां आकर सर्वे नहीं कर लेती है, तब तक लोकेशन को गुप्त रखा गया है। खोजी दल के सदस्य दीपक बताते है कि इन स्थलों से कुछ पत्थर निर्मित भी मिले है। पत्थर पर उकेरी गयी कलाकृति के बारे में उन्होंने बताया कि ये हेमाटाइट पत्थर से घिसकर बनायी गयी कला है। जिसे 'पैल्यू' कहा जाता है। 'पैल्यू' कला प्री-हिस्टोरिक काल में कई बार मिली है। वैसे इस कलाकृति के बारे में विशेष जानकारी एएसआई ही दे सकती है। यह स्थान घने जंगल में खुली अवस्था में है। जो वर्षो से मौसमी मार को झेलता आया है। इन साइटों की खोज के विषय में पूछे जाने पर दीपक बताते है कि चीनी यात्री ह्वेंनसांग ने नालंदा जिले में कुल 36 साइटों का उल्लेख किया है। जिसमें अभी भी लगभग एक दर्जन साइटों की पहचान भी नहीं की जा सकी है। इनमें कल्पिनाका स्तूप संख्या 33 व 34, कुलिका की स्तूप संख्या 31 व 32 व इसके अलावा राजगीर फोर्ट के इर्द-गिर्द भी कई स्तूप है। जिसकी खोज आज भी अधूरी है। इन्हीं साइटों के खोज के क्रम में उक्त गुफाओं की श्रृंखला व कलाकृति मिली है। इस उपलब्धि से खोजी दल काफी उत्साहित है। दल का मानना है कि अगर पुरातत्व विभाग दिलचस्पी लेते हुए इसकी सही-सही डेटिंग व मैपिंग करे तो यह क्षेत्र निश्चित तौर पर कल्चरल टूरिज्म व कम्यूनिटी टूरिज्म को बढ़ावा दे सकता है। भ्रमण के लिए अच्छा साइट भी बन सकता है। इससे न केवल स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा बल्कि पर्यटन का भी विकास होगा।"
आपके द्वारा दी गई कड़ियों पर प्रकाशित समाचार मैंने 26 तारीख को सुबह-सुबह ही पढ़ लिये थे । आपके जालस्थल पर की ब्लॉग सूची में श्री दीपक आनन्द के ब्लॉग "नालन्दा" (http://nalanda-insatiableinoffering.blogspot.com/) पर भी भेंट दी । इस ब्लॉग में नालन्दा सम्बन्धी काफी ज्ञानवर्धक सूचनाएँ देखने को मिलीं, विशेष रूप से "ली" नामक दूरी की इकाई के सम्बन्ध में, जिसका मान मेरे पास उपलब्ध Chinese-English Dictionary के अनुसार 1/2 कि॰मी॰ है ।
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