आलेख : मित्र सुजीत चौधरी का / फस्सिल में ताड़ी की बहार
( मित्र कौशल ने मगह क्षेत्र में ताड़ी पीने की सामाजिक परंपरा पर अपना आलेख लिखकर मगह के सामाजिक - सांस्कृतिक जीवन में ताड़ी, पासी जाति, पासीखाना और ताड़ी की सामाजिक मान्यता पर आपसी विचारों के आदान - प्रदान के लिए एक नया मंच खोला है. मैं जानता हूँ की कौशल जी ने ताड़ी चखने से ज्यादा कुछ नहीं किया है परन्तु उन्होंने ताड़ी को गैर-मगही नजरिये से ( जो ताड़ी को निकृष्ट मानता है ) बाहर निकालकर मगह की लोक संस्कृति में ताड़ी के महत्व को स्थापित किया है . चलिए उनसे उत्प्रेरित होकर मैं ताड़ी पर यह आलेख लिख रहा हूँ )
परदेस प्रवास में कभी-कभी मादरे-वतन की यादें आती रहती हैं. त्यौहार हो, बदलते मौसमों की खुमार हो या रिश्तों के हाल-चाल .... अपनी जमीन की खुसबू और उसकी खींच से हम मुक्त नहीं हो पाते. अब तो दूरसंचार का जमाना है . हरेक साल गर्मियों में हमारे मित्र गण दाऊदनगर से फ़ोन करते हैं की " ...फस्सिल (फसल का मगही अपभ्रंश ) ) आ गईल हऊ अऊर बगईचा में ताड़ी पिय थी और तोरा याद आवा हऊ " . इस साल भी फ़ोन आया औरफस्सिल की यादें तरोताजा कर गयीं. फस्सिल यानि गर्मियों के महीने जो बैसाख से शुरू हो जाती है और आसाढ़ के प्रारंभ तक चलती है. इन महीनों में ताड़ी का रिसाव तापमान के साथ -साथ बढ़ता जाता है. आसाढ़ के मेघ और बारिश की फुहारों से ताड़ी पनिया जाता है और इसकी मिठास बढ़ जाती है. अब तो ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव भी फस्सिल पर पड़ रहा है सुनते है गर्मी के बढ़ जाने के कारण फागुन- चैत से ही फस्सिल शुरू हो जाती है.
तक वहां पहुँच जाते हैं. tabtak सुबह की ताड़ी आ चुकी होती है और उसके रसपान से शुरुआत होती है ताड़ी पीने की. दुपहर तक दूसरा खेप आ जाता है जो काफी नशीला और ज्यादा खट्टा होता है . चखने में सत्तू , चना , घूग्नी, मूंगफली चलती है. जो लोग रेगुलर ग्राहक होते हैं उनके लिए भोजन का भी प्रबंध हो जाता है. शाम ढलते - ढलते एक और खेप आता है. ताड़ी पीने का यह दौर रात तक चलता है. अर्ध-रात्री की ताड़ी सबसे
जायकेदार होती है . दूसरी बात, ताड़ एक diocious plant है यानी नर और मादा पेड़ अलग अलग होते हैं. इसीलिये ताड़ दो तरह के होते हैं : बलताङ (नर) और फलताड़ (मादा) . फल्ताड़ की ताड़ी उतनी स्वादिष्ट नहीं होती. सर्दियों के दिनों की ताड़ी या अहले सुबह की ताड़ी अगर पी जाये तो स्वास्थ के लिए बहुत अच्छा होता है क्योंकि ताड़ी में sucrose होती है और fermentation के कारण वह नशीला हो जाता है. मुझे याद है मेरे नाना जो डॉक्टर थे, यकृत के मरीजों को बाकायदा सुबह की ताड़ी पीने की सलाह दिया करते थे.
हाँ मित्रों , फस्सिल में बगीचे पिकनिक स्पॉट में बदल जाते हैं. लोगों का हुजूम. क्या अमीर क्या गरीब. क्या उच्च वर्ण और क्या नीची जाति ले लोग. यह मयकदा सबों को मस्ती के एक धरातल पर ले आता है. गप-शप, विचार-विमर्श, देस-दुनिया की खबरें, गीत-संगीत. हाँ ताड़ी पीने या रखने का पैमाना भी होता है : चुक्का , पंसेरा, लबनी और सबसे बड़ा घडा. अगर जमात बड़ी हो और पीने का दौर लम्बा हो तो एक-दो लबनी काफीहोती है. ताड़ी पीने के लिए पासी ताड़ के पत्तों से दोनी बनाकर देता है जिसमे ताड़ी पीने का अलग ही अंदाज होता है.
मैंने सबसे पहले ताड़ी अपने पडोसी " गुप्तवा " जो जाति का भङभूँज़ा था , उसके घर में पिया . फस्सिल में घर में ताड़ी लाना और पीना आम बात थी और उस तबके के लोगों में स्त्रियाँ भी ताड़ी पीती हैं. जो लोग वृद्ध थे और उनका घर के बाहर आना - जाना मुश्किल था या वे लोग जो बगीचे या पासीखाने में जाना अपनी शान के खिलाफ मानते उनके लिए पासी घर में ताड़ी दे जाता मगर ताड़ी पीने की परंपरा सर्वव्यापी थी.
डोमन चौधरी का ताडीखाना को हमने लबदना युनीवर्सिटी कहते थे जिसके वाइस चाँसलर खुद दोमन चौधरी हुआ करते थे और हम उनके छात्र थे. डोमन चौधरी हमारे लिए सबसे अच्छे ताड़ की ताड़ी और विशिस्ट चखने का इंतजाम करते. हरेक बगीचे और अलग अलग पेडों की ताड़ी की अलग अलग तासीर और स्वाद हुआ करता था और आमतर लोग किसी खास बगीचे या किसी खास पेड़ की ताड़ी ही पीना पसंद करते थे.
ताड़ मगह का बियर है जो फस्सिल में सरेआम बहता है आप उन्जरी लगायें और पियें पेट भरकर , यह तरावट भी देगा और शुरूर भी जो इस धरती पर कहीं और नहीं !