Saturday, 13 June 2009

मगह में मेरा गाँव ,नरेगा , क्षत -विक्षत पूल और " दिन रात भेल दुरगतिया हो भोला "


नरेगा के तहत काम करते मजदूरों की तस्वीर असली है.हाँ इसमें तसला जरूर नहीं दिख रहा है.पर सब कुछ दीखने और दिखाने की भी एक सीमा है. सब कुछ तो प्रायोजित तस्वीरों में हीं दिखता है.

अगर बात करें जो तस्वीर में दिख रहा है उसकी तो - ये बदहाल ,जीर्ण शीर्ण पूल ( मेरे ग्राम वासी इसे छीलका कहते हैं.) इस अंचल की बदहाली ,लोगों की बेबशी और सरकारी तंत्र की संवेदनहीनता व उपेक्षा की कहानी कह रहा है.

सिंगरियामा रेलवे स्टेशन से खरभैया ,सरथुआ और इसके चार पांच टोलों के लिए रास्ता इसी पूल से होकर गुजरता है.अनुमान लगाएं की बरसात में जब पईन में पानी भर जाता होगा तो इस इलाके की बहु बेटियाँ और अन्य लोग इसे कैसे पार करते होंगें.

ऐसा नहीं था के शुरुयात से इस रास्ते की यही हालत थी .

सरकारी दस्तावेजों में अगर ढूंढा जाय तो ब्रिटिश काल में यह खरभैया - सिंगरियामा  , पटना जिला परिषद् की सड़क है.और सन १९४० से हीं रेलवे स्टेशन से खरभैया गाँव तक पत्थर के माइल स्टोन लग गए थे .अलंग से चौडी और हर जगह प्रस्तावित सड़क के लिए दोनों तरफ गैरमजरुया जमीन का प्रावधान . जानकार कहते हैं की १९४७ के बाद सड़क तो नहीं बनी पर इसकी मरम्मत के नाम पर हजारों लाखों का वारा - न्यारा पटना डिस्ट्रिक्ट बोर्ड करता रहा है. लोगबाग कहते हैं के अगर अंग्रेजी हुकूमत कायम रहती तो अब तक गाँव तक प्रस्तावित सड़क बन जाती .आखिर अंग्रेज बहादुरों ने हीं तो फतुहा इस्लाम पुर मार्टिन लाइट रेलवे , सड़क और मेरे गाँव तकप्रस्तावित सड़क के लिए  माइल स्टोन लगवाया था.

उतना पीछे से निकल कर चलिए हाल साल लौटते हैं."जंगल राज " के शुरूआती दौर में इसका निर्माण शुरू हुआ.पूरा होने के पहले हीं धाध(बाढ़) में टूट - फूट गया .और फिर उसके बाद हर साल बरसात में इस पूल और और इससे गुजरने वाले ग्रामीणों की दुर्गति निर्बाध चालु है.सुशासन के पिछले तीन साल में भी.

मैथिलि के मूर्धन्य कवि विद्यापति की एक कविता की मर्मस्पर्शी पंक्ति है " दिन रात भेल दुरगतिया हो भोला ".

महाकवि की ये पंक्तियाँ कितनी सटीक बैठती हैं मेरे गाँव के लोगों पर .

पता नहीं इन लोगों के दुर्गति के दिन कब ख़तम होंगें ?

हाँ इतना तय है की नरेगा जहां फिलहाल सिर्फ मिटटी के काम का हीं प्रावधान है उससे तो यह पूल नहीं बनसकता है .


2 comments:

  1. अच्छी लगी पोस्ट मित्र। खरभैया-सरथुआ के बारे में और जानने का मन है। क्या करते हैं लोग? और अब बरसात आने वाली है, क्या तैयारी कर रखी है उन लोगों ने।
    मैने पूर्वी उत्तरप्रदेश देखा है पर अधिकांश बिहार नहीं। छपरा-सिवान देखा है और उसके गौरवशाली अतीत और थर्डक्लास वर्तमान को अनुभूत कर चुका हूं।

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  2. चलिए कभी न कभी इसका भी समय आएगा . कविराज की पूरी रचना लिखते तो आनंद आ जाता .बहुत बढियां पोस्ट लिखा है आपने .

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