Sunday 8 March 2009

एक खबर - प्राचीन गढ़ के अवशेष मिले नालंदा जिले के गाँव में

( दैनिक जागरण , पटना के सौजन्य से एक खबर .)
चंडी व इस्लामपुर में मिलीं पालयुगीन मूर्तियां
Mar 09, 12:21 am
बिहारशरीफ जिले के इस्लामपुर व चंडी प्रखण्ड में पुरातत्व विभाग की टीम को कई महत्वपूर्ण स्पाट मिले है। इनमें अनुमानत: छठी से सातवीं सदी के किले व मंदिरों के अवशेष तथा हिन्दू व बौद्ध धर्म के आराध्य देवों की प्रतिमाएं शामिल है। एक वर्ग कि.मी. में फैले मिट्टी के गढ़नुमा अवशेष को ले पुरातत्व विभाग विशेष उत्साहित है। पकी मिट्टी से बने स्थापत्य व मूर्तिकला के नमूने इसके पाल युगीन होने की ओर इशारा कर रहे है। इन प्राचीन अवशेषों की स्थिति बेहद सोचनीय है। संरक्षण के अभाव में मूर्तियां व भग्नावशेष इधर-उधर बिखरे पड़े है।
इस्लामपुर प्रखंड के इचहोस गांव में बुद्ध विहार तथा मंदिर के दरवाजे व स्तंभ मिले है। जो स्थापत्य कला के अद्भुत नमूने हैं। इसी प्रखण्ड के वेश्वक गांव में मिट्टी के किले का अवशेष मिले है। जिसके निर्माण काल का अंदाजा छठी व सातवीं सदी लगाया जा रहा है। किले के चारों तरफ बुर्ज, मिट्टी की चहारदीवारी तथा पाल कालीन हिन्दू व बौद्धिष्ट मंदिर के अवशेष स्पष्ट दृष्टिगोचर है। इस क्षेत्र को सुरक्षित रखने की बजाए स्थानीय लोगों ने कब्रिस्तान के लिए अतिक्रमित कर लिया है। इस्लामपुर के ही मुबारकपुर में हिन्दू देवी-देवताओं की पाल कालीन और बौद्ध कालीन मूर्तियां मौजूद है। इनमें बुद्ध, तारा, अवलोकितेश्वर, विष्णु, लक्ष्मी, सरस्वती, ब्रह्मा, वाराह व शिव-पार्वती की प्रतिमाएं है। चंडी प्रखण्ड के जैतीपुर मोड़ से चार किमी पश्चिम रूखाईगढ़ में एक वर्ग कि.मी. में फैले 30 फीट ऊंचाई के विशालकाय गढ़ के भग्नावशेष विद्यमान है। यहां पकी मिट्टी की कई प्रतिमाएं भी मिली है। पुरातत्वविदों का कहना है कि यहां मौर्य काल से पहले पाल कालीन (10वीं शताब्दी) की सभ्यता के अवशेष मिलने की प्रबल संभावना है। इसी प्रखंड के तुलसीगढ़ में एक विशालकाय स्तूपाकार संरचना है। जिसकी ऊंचाई लगभग 30 से 35 फीट व व्यास लगभग 60 मीटर है। आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया की टीम को शोध के अनगिनत पहलू मिल चुके है। अब पुरातत्वविदों ने इन सभी संरचनाओं के संरक्षण की जरूरत बतायी है। खोज में जुटी एएसआई की टीम ने राज्य सरकार से इन क्षेत्रों की घेराबंदी की मांग की है।
बता दें कि उपरोक्त सभी स्थलों का निरीक्षण भारतीय पुरातत्व शाखा तीन के अधीक्षक एन.जी.निकोसे ने निर्देश पर किया गया। निरीक्षण में घोड़ा कटोरा में खुदाई कार्य कर रहे पुरातत्वविद डा. सुजीत नयन, डा.जलज तिवारी व आशुतोष शामिल थे।

2 comments:

  1. "पुरातत्वविदों का कहना है कि यहां मौर्य काल से पहले पाल कालीन (10वीं शताब्दी) की" पाल काल मौर्यों के बाद का है.

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  2. जी हाँ गलत रिपोर्टिंग है.मूर्तियाँ पाल युगीन होंगी . संभवतः मंशा यह लिखने की होगी की मौर्या युग के बाद पाल युग.
    रही बात मूर्तियों की तो मैं अपने निजी अनुभव के आधार पर यह कह सकता हूँ की पटना गया और राजगीर का जो त्रिकोण बँटा है उसके अधिकतर गाँव टिल्हों और यहाँ तक की खेतों में यदा कदा मिटटी के थोड़े भीतर हिन् मूर्तियाँ मिलती रहती है. ये मूर्तियाँ काले पत्थर की होती है. मेरे गाँव के आस पास (पटना जिले का पूर्व दक्षिण हिस्सा )शायद ही कोई गाँव हो जिसमे मूर्तियाँ न मिली हों.मगध क्षेत्र की इन मूर्तियों ,जो की गाँव में किसी एक जगह - सामान्यतः देवी स्थान , किसी मंदिर अथवा किसी कुएं ,तालाब के किनारे इकठ्ठा कर रखा जाता है , उसका सिलसिलेवार ढंग से catologue बनाना और सुरक्षा का इन्तेजाम जरूरी है
    कौशल किशोर

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