मगही और उर्दू कहें या के फारसी ,का अद्भूत मिश्रण मगध क्षेत्र के लोक जीवन में मिलता है.
मगध क्षेत्र इस्लाम के हिन्दुस्तान के प्रारंभिक ठिकानों में से एक रहा है . मगध तेरहवीं सदी से लेकर सोलहवीं सदी तक सूफी संतों का ठौर रहा .इस काल खंड में पाली अपना रूप क्रमशः बदलते हुए मगही का रूप अख्तियार कर रही होगी .इसी दौर में फारसी के चासनी भी लग रही होगी
मैं एक शब्द बचपन से सुन रहा हूँ - गाली गुप्ता . अभी हाल में एक मित्र ने बताया की यह फारसी भाषा के शब्द " गाली- ये - गुफ्तगू " अर्थात " बात चीत गाली में " का तद्भव रूप है.
एक शब्द है बोकराती , जिसका प्रयोग अटपटी बात के सन्दर्भ में होता है .इस शब्द का सम्बन्ध महान दार्शनिक सुकरात से है. चूंकि उच्च या कुलीन वर्ग का दर्शन आम लोगों के लिए अनबुझ पहेली के तौर पर पर होता है तो सुकराती से बोकराती हो गया .सुकरात भी अनबूझ और अटपटी बात तो अटपटी ही है
पूरे मगही क्षेत्र में अंतिम संस्कार - चाहे हिन्दू का हो अथवा मुसलमान का - दोनों के लिए एक ही शब्द है - मट्टी मंजिल .
मगही में तो उर्दू ,फारसी शब्दों की भरमार है , पता नहीं मगध क्षेत्र की उर्दू में भी कुछ विशिष्ठता है क्या ?पिछले पांच छः दशकों की कुनबापरस्ती या कहें तो अलगाव ने मगह की खास संस्कृति पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचने ,समझने और लिखने में बाधा पन्हूंचायी.
प्रशासक मनीषी ग्रिएर्सन , जो गया के कलेक्टर थे ,ने अपनी किताब -पीजेंट लाइफ ऑफ़ बिहार (1885) में अद्भूत शोध कार्य किया .लेकिन हम उस शोध परम्परा को आगे नहीं बढा पाए.सामूहिक विरासत को धर्मं और जाति के खांचे में देखने लगे .
मगध एक मायने में फल्गु , पुनपुन और दरधा नदियों के द्वारा सींची और कहें तो सदियों से पाली गयी है . इतिहास कार मगध साम्राज्य के उदय में राजगृह और निकटवर्ती पहाडियों में लौह अयस्क के भडार और धातु कला में मगध वासियों की कुशलता की निर्णायक भूमिका मानते हैं.धान की खेती इस क्षेत्र की मुख्य उपज रही है. और यह खेती , बर्षा और आहार -पईन , जोल की सिंचाई पर निर्भर रही है.
मगही में मानसून की बर्षा की मात्रा को बताने के लिए बहुत जीवंत दृश्यात्मक शब्दों का भंडार है.
उस दौर में मगही किसान मिलीमीटर में वर्षा नहीं मापता था.
1.सबसे कम बारिश - बून्दाबुन्दी या टपका टोइया
2.धुरी मारन ( धुल मरने भर )
3.ओहारी चलना - खपरैल घर की छत की टोंटियों से पानी की धरा बहना
4.हाल भर वर्ष - खेतों में इतनी नमी हो जाय की आसानी से हल चल सके.
5.एक अछार / दो अछार - एक या दो झोंक की वारिश
6.आरी पार करना - इतनी वर्षा की खेत में पानी भार जाय और मेड ( आरी ) पार कर जाय
7 .झपसी - झीनी झीनी वारिश, जो की मानसून के उत्तरार्ध में इस क्षेत्र में होती है
ढाई हजार सालों की गौरव पूर्ण सामूहिक विरासत के संरक्षण का तकाजा है की मगह क्षेत्र के लोक जीवन और भाषा का दस्तावेजी रिकॉर्ड तैयार किया जाय .
भाषा और उसके शब्दों के अंत के साथ हीं विरासत का अंत तय है.
मगही के शब्द और भावः सन्दर्भ ,विवेचना ,शोध और संकलन का आग्रह कर रहा है .
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मगही में, विशेषतः बिहारशरीफ की मगही में, अरबी-फारसी के अनेक शब्द निर्विवाद रूप से पाये जाते हैं । कई बार तो अनपढ़ लोग भी ऐसे-ऐसे उर्दू शब्दों का प्रयोग मगही में करते कि मुझे उर्दू कोश उलटकर देखना पड़ता (जैसे - इजहार, हिकमत आदि) । खुदा-न-खास्ते (= ख़ुदा-न-ख़्वास्तः), इन्दे ( = आइन्दा), उज्लत इत्यादि उर्दू शब्द तो आम हैं ।
ReplyDeleteसुझावः आपने सम्पर्क के लिए कोई इ-मेल आई-डी नहीं दिया है और न तो उस विकल्प का चयन किया है जिससे आपको पता चले कि किसी ने आपके किसी पोस्टिंग पर टिप्पणी की है । सम्पर्क के लिए कोई विकल्प तो खुला रखिए ।
मेरा ईमेल id है
ReplyDeletekaushalkishorejnu@yahoo.कॉम
मैं ब्लॉगजगत में नया हूँ और कहें तो थोडा इस विधा में chalenged. इसी कारण वश ईमेल id नहीं दे पाया हूँ.
आपकी त्वरित टिपण्णी के लिए शुक्रिया
सादर
अच्छा लगा पढ़कर ..
ReplyDeleteमगध के धरोहर जो कि उर्दू फ़ारसी से भी पुरानी है, उस गौरव पूर्ण अतित को आप आक्रमणकारी आक्रांताओं के कब्र में गाड़ दिया।
ReplyDeleteआत्महीनता जिसमे होगी वो तो बादशाह सलामतो की भाषा पर गर्व करेगा पर स्वाभिमानी नही कर सकता है ।
उर्दू फ़ारसी शब्द ही नही नाम भी बहुत लोगों ने रख लिया था जिजिया माफ करवाने के लिए ..... और आज वो अरब की तरफ देखकर ईश भक्ति करते है ।