मगध क्षेत्र की ऐतिहासिक सांस्कृतिक गौरव और इसके अविछिन्न इतिहास का आधार इस इलाके की अद्भुत सिंचाई व्यस्था रही है.फल्गु , दरधा और पुनपुन मगध क्षेत्र की ये तीन मुख्य नदियाँ हैं. दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवाहमान ये नदियाँ कई शाखायों में बंटती हुयी ( दरधा फतुहा के समीप पुनपुन नदी में मिल जाती है ) गंगा में मिलती हैं. बराबर पहाड़ के बाद फल्गु कई शाखयों में बँट कर बाढ़ - मोकामा के टाल में समा जाती है . बौद्ध काल से हीं मगध वासियों ने सामुदायिक श्रम से फल्गु ,पुनपुन आदि इन नदियों से सैंकडों छोटी -छोटी शाखायें निकाली जिससे की बरसात में पानी कोसों दूर खेतों तक पंहुचाया जा सके . सामुदायिक श्रम से वाटर हार्वेस्टिंग की एक अद्भुत विधा और तकनीक का विकास ,सह्स्त्रवदियों से इस इलाके में होता रहा ,जो की ब्रिटिश शासन तक चालू रहा.फल्गु /पुनपुन के जल से आहर -पईन - जोल वाली विधा ने धान की खेती पर आधारित वह अर्थव्यस्था तैयार की जिसने मगध साम्राज्य , बौद्ध धर्म के उत्कर्ष ,और पाल कालीन वैभव और संस्कृति को जन्म दिया . सिंचाई की इस विधा की विकास प्रक्रिया ब्रिटिश हुकूमत के प्रारंभिक काल - परमानेंट सेटलमेंट - तक कम से कम चलती रही .औपनिवेशिक शासन काल में इस व्यवस्था में ह्रास शुरू हुआ और आजादी के बाद तो यह व्यवस्था अनाथ हो गयी. नए दौर की नयी हुकूमत , संवेदनहीन नौकरशाही और नये जमाने की सिविल इंजीनियरिंग ने इस कारगर सिंचाई व्यवस्था की ऐसी तैसी कर दी. मगध के ग्रामीणों की सुध बुध लेने वाला कौन था ?
मगध की इस ऐतिहासिक आहर - पईन - जोल की सिचाई विधा पर समुचित शोध अब तक नहीं हुआ है. नदी से चौडी मीलों लम्बी आहर खोदी जाती थी. आहर कई गाँव की धान के खेतों की सिंचाई की जरूरत को पूरा करती थी.आगे चल कर आहर छोटे छोटे चैनल्स में बाँट दी जाती थी .इन छोटी शाखायों को पईन कहते थे. आहर और पईन खोदते समय निकली मिटटी से अलंग बन जाता था जो की अतिवृष्टि में बाढ़ का सामना करने में सहायक होता था. भूक्षेत्र के केंद्र में गाँव और गाँव के चारों तरफ समतल मैदान में खेत ,मगध के ग्रामीण बसाहट की विशेषता है. मगध में खेतों के बड़े समुच्चय ( ५० से १००/२०० एकड़ रकबे ) को एक खंधा कहा जाता है. हर खंधे का अलग नाम होता है- मोमिन्दपुर, बर्कुरवा, धोबिया घाट , सरहद , चकल्दः , बडका आहर ,गोरैया खंधा आदि . समझने के लिहाजन खंधे को आयताकार क्षेत्र के रूप में लिया जा सकता है. अक्सरहां खंधे की चौहद्दी पर चौडी मजबूत अलंग , अलंग से सटे आहर - जिसमें नदी का पानी बड़े आहर से आता है. अलंग में पुल की व्यवस्था जिससे की जरूरत के मुताबिक खंधे में पानी लिया जा सके . खंधे के भीतर चौडे आहर , पतले पईन में बँट जाती है. पतली पईन नदी के पानी को खेत तक पन्हुचाती है.पईन में थोडी दूर पर करिंग चलने के लिए अन्डास निर्धारित होता है. अन्डास पर खम्भा - लाठा से करिंग नाध कर हर खेत में करहा ( छोटी नाली ) द्वारा खेत की सिंचाई होती है.गया जिले के दक्षिणी इलाके में हदहदबा पईन, कहते हैं की एक सौ आठ गाँव की सिंचाई करती है. बरगामा नामधारी पईन ( ऐसा पईन जो बारह गाँव को सिंचित करे ) तो लगता है की मगध के हर क्षेत्र में है.
जोल सिंचाई की इस व्यवस्था का अहम् हिसा रहा है. खंधे के नीचले हिस्से को जोल कहा जाता है. जोल एक तरह से खंधे की सिंचाई की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक reservoir ( छिछला जलाशय ) है. अलंग से सटा आहर ( चौडे आहर को खई भी कहते हैं ) और उससे सटे निचले खेत जोल का हिस्सा माना जाता है. जोल को खंधे का पानी का खजाना भी कहते हैं और इसमें धान की लम्बी और गहरे पानी को सहने वाली प्रजातियाँ लगायी जाती हैं. .खंधे के ऊँचे खेतों में तो धान की रोपनी होती है पर जोल में असाध माह में हीं बिचडे खेत जोत कर छींट दिए जाते हैं. धान की खेती के इस तरीके को बोगहा कहते हैं और बोगहे की खेती अगात ( शुरुयात ) खेती मानी जाती है. बोगहा की खेती में दर- मन ( प्रति एकड़ उपज )कम होता है अतः किसान इसे मजबूरी की फसल मानते हैं.
आहर - पईन - जोल वाली सिंचाई व्यस्था के संदर्भ में छालन और गुयाम - इनको समझना जरूरी है. छालन सिंचाई की वह व्यवस्था है जिसमें नदी का पानी आहर , आहर से पईन होता हुआ करहों ( छोटी-छोटी नालियों द्बारा ) सीधे धान के खेत में पंहुच जाता है.जैसे हीं धान के खेत में पानी पर्याप्त हुआ खेत में आने वाले करहे को बंद कर दिया जाता है.और इस तरह नदी का पानी बिना विशेष मेहनत के हर खेत में पहुँच जाता है. खंधे में पानी प्रयाप्त होने पर पुल का मुंह बंद कर दिया जाता है. छालन की इस व्यवस्था में नदी का पानी ,जमीन के स्वाभाविक ढलान या स्लोप से स्वतः पईन और करहों से होता हुआ खेतों तक पंहुच जाता है. लाठा कुण्डी, करिंग अथवा डीजल सेट की जरूरत नहीं पड़ती है. हर गाँव में कोई न कोई खंधा जरूर ऐसा है जिसके खेतों की सिंचाई छालन से हो जाती है.
गुयाम - सामुदायिक श्रम की एक व्यवस्था है जिसमें गाँव का हर आम-ओ -खास जरूरत पड़ने पर नदी में बाढ़ आदि की परिस्थिति में अलंग / तटबंध की सुरक्षा रात दिन करता है. गुयाम आपात परिस्थिति में आपसी सहयोग और समन्वय का एक अद्भुत उदहारण है.
उपर्युक्त विवरण को मगध की इस ऐतिहासिक आहर -पईन - जोल आधारित सिंचाई व्यस्था का एक प्रारम्भिक स्केच समझा जाय.
इस सिंचाई व्यस्था के कई सामजिक और सिविल इंजीनियरिंग पहलु हैं जिसकी समीक्षा और नए दौर की जरूरतों के अनुसार पुनर्स्थापित करने की जरूरत है.यह कहने की जरूरत नहीं की बिहार के विकास के लिए मगध क्षेत्र का विकास तथा मगध क्षेत्र के विकास के लिए कृषि और ग्रामीण विकास अनिवार्य है . और इस इलाके के कृषि के विकास की शर्त यह है की इस इलाके की पारंपरिक सिंचाई व्यस्था को बहाल किया जाय .
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Is sinchai vyavastha ne ascharya me dal diya.Kai naveen shabdon se bhi parichay hua.
ReplyDeleteकौशल जी
ReplyDeleteलालू प्रसाद के कार्यकाल में मैं बिहार आया था पूरे अराजक माहौल को काफी करीब से देखने को मौंका भी मिला।लालू प्रसाद और रामविलास पासवान ने बिहार के साथ जो किया उसको लेकर कुछ कहने की जरुरत नही हैं।नीतीश कुमार से मेरी कोई व्यक्तिगत दुर्भाव नही हैं।नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री कार्यकाल में वह सब कुछ हो रहा हैं जो लालू प्रसाद के समय में साधु और सुभाष करते थे फर्क सिर्फ इतना हैं कि इसे देखने के लिए चश्में लगाने की जरुरत हैं क्यों कि जिन्हे यह सब दिखाने का जिम्मा हैं वो बिक चुके हैं य़ा फिर लालू के आने के भय चुप हैं।आप पटना में रहते हैं सरकारी नौकरी में हैं बिहार के अधिकारी से मिलते ही होगे जरा पता लगाये आज भी जिला में पोस्टिंग के लिए बोली लगती हैं बिहार के अधिकांश जिले के एस0पी0और डीएम0की कुर्शी बिकती हैं और बेचने वाला कोई और नही मुख्यमंत्री के काफी करीबी हैं।अपराध और अपराधियों पर जरुर लगाम लगा हैं लेकिन वह सिर्फ राजधानी पटना तक ही सिमटा हैं।अखबार के जिलावार होने के कारण आप राजधानी के बाहर की खबड़े जान कहा पाते हैं।निगरानी भ्रष्टाचारियों के खिलाफ अभियान चलाने का दवा कर रही हैं सिर्फ आप अपने मोबाईल फोन खोने का सनहा या फिर जाति या फिर आवासीय प्रमाण पत्र बनाने सरकारी दफ्तर में जाये आपको पता चल जायेगा की सूबे में कितना सुशासन हैं ।हो सकता हैं यह सब आपके लिए माईने नही रखता हो या फिर इसे आप नियति मान लिये हो। लेकिन मैं नीतीश के सुशासन को इस कसौंटी पर रोजना कसते हैं तो लगता हैं कि फर्क बहुत कुछ दिमागी हैं।
ब्लांग पर बने रहे इसी शुभकामनाओं के साथ दशहरा की जय हो।
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट। मगध क्षेत्र की पारंपरिक कृषि व्यवस्था के बारे में काफी जानकारी मिली। मैं तो हमेशा से मानता रहा हूं कि "हम दो पाटन के बीच' फंस गये हैं। हम न तो आधुनिक हो पाये और न ही पारंपरिक ही रहे। कभी इसी कृषि व्यवस्था के सहारे मगध ने इतिहास रचा था, लेकिन आज इसके लिए सरकार के पास हजारों इंजीनियर, क्लर्क, अधिकारी-कर्मचारी है, लेकिन परिणाम अत्यंत निराशाजनक। क्या कहा जाये, कुछ समझ में नहीं आता। हर मोर्चे पर कमोबेश यही स्थिति है। पता नहीं हमारी व्यवस्था कभी सुधर पायेगी भी की नहीं। समाज और समूह को लेकर आज कोई गंभीर नहीं है। न तो सरकार न ही जनता। सब व्यक्तिगत उन्नति के लिए बेचैन है। बहरहाल, इस पोस्ट से मैं लाभान्वित हूं।
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