Wednesday 9 September 2009

मगध में समेकित जल प्रबंधन - बाढ और सुखाड़ से निजात कब मिलेगा ?

बिहार के सन्दर्भ में बाढ़ की चर्चा अक्सर होती है. गत वर्ष की कोशी की भयावह बाढ़ की स्मृति अभी शेष है और कोशी अंचल उस प्रलय के पुनरागमन की आशंका से अभी नहीं उबरा हैं. पर बिहार और बाढ़ की चर्चा के दायरे में मगध क्षेत्र की बाढ़ और सुखाड़ की सालाना त्रासदी कभी चर्चा और सरकारी उद्दयम का केंद्र विन्दु नहीं बन पाता है. इस इलाके ( खास कर जहानाबाद , नालन्दा और पटना जिले के दक्षिणी इलाके ) के करोडों बदहाल ग्रामीण इस सालाना त्रासदी को अपनी नियति मान बैठे हैं.

हलाँकि इस साल अतिवृष्टि की वजाय अनावृष्टि का प्रकोप बिहार में ज्यादा रहा है. बिहार के किसान - खासकर मगध के - इस साल के सुखाड़ की तुलना सन १९६७ ( अकाल साल के रूप में जन मानस में जीवित ) के भयानक सूखे और अकाल से तुलना कर रहें हैं.फल्गु, पुनपुन और इनकी सहायक नदियों में आसीन ,माह तक इतना कम पानी ,चालीस- पचास साल में कभी नहीं आया .धान की रोपनी काफी कम हुयी. जैसे -तैसे डीजल सेट से मोरी को जिंदा रखा गया. असीम जीवट वाला मगही किसान बर्षा की उम्मीद में महंगे डीजल से धन रोपनी किया . लेकिन पुरे सावन भादो में कभी इतनी बारिश नहीं हुयी की धान की फसल के लिए प्रयाप्त हो जाए.बहुत इलाकों में वर्षा के अभाव में धान की फसल कड़ी धुप में जल गयी.

लेकिन मौसम का मिजाज देखें ,इधर पिछले सात दिन से कमो वेश पुरे मगध में झीनी झीनी
वर्षा ( झपसी ) हो रही है . धान के खेतों में काम लायक पानी हो गया है.जिन खेतों में धान की रोपाई नहीं हो पायी वहाँ अगात भिठा ( रब्बी फसल ) की तैयारी के लिहाजन भी यह झपसी फायदेमंद है.पिछले साल भीइस इलाके में बाढ़ का प्रकोप रहा था. सैकडो गाँव जलमग्न रहे . धान की फसल बाढ़ में बर्बाद हो गयी. अलंग और नदियों के सुरक्षा तटबंध ध्वस्त हो गए . सरकारी राहत जरूरत मंदों के बीच जरूर वितरित हुआ. किसानों को सोलह हजार रुपये तक फसल बीमा के तहत सरकारी सहायता भी मिली. राहत का अपना महत्व है और सरकारी राहत ने बाढ़ पीड़ित जनता का दुःख दर्द निसंदेह कुछ कम किया .पर बाढ़ का दंश सरकारी सहायता से आगे तक मारक असर करता है.

२००६ और २ ००७ में भी मगध क्षेत्र का यही हिस्सा बाढ़ से प्रभावित था .धन और आजीविका की व्यापक क्षति इस इलाके में लगातार चार - पांच सालों से हो रही है. लगातार बाढ़ और इस साल आसाढ़ ,सावन और भादो में सुखाड़ - त्रासदी से यह इलाका उबर नहीं पा रहा है.कल परसों से अचानक फल्गु ,पुनपुन और इन दोनों की सहायक नदियाँ और शाखाएं पुरे उफान पर है.नदियों का पानी इन के डूब क्षेत्र में फैलने लगा है. नदी तटबंधों पर पानी का भरी दबाव है . छोटानागपुर और हजारीबाग -इन नदियों के जल संग्रहण क्षेत्र -में अगर और वर्षा होती है या तट बन्ध टूटते हैं तो पुरे इलाके में बाढ़ की आशंका है. हलाँकि अखबारों की शुरुयती रपट सैंकडों गाँव में फ्लैश फ्लड की बात कह रही है.

बिहार में विकास और आधारभूत संरचना के निर्माण की चर्चा , नीति निर्धारण और कार्यान्वयन में मगध क्षेत्र में ठोस दृघ्कालीन जल प्रबंधन की बात अब तक नहीं आई है.फल्गु , पुनपुन और इनकी सहायक नदियों और शाखायों में बरसाती पानी के समेकित प्रबंधन की जरूरत है.बिना इसके इस क्षेत्र के तीन करोड़ लोगों का जीवन खुशहाल नहीं बनाया जा सकता है.सनद रहे की मगध की इसी उर्वर भूमि ने वह आर्थिक आधार मुहैया किया जिसकी गोद में महान मगध साम्राज्य का उदय हुआ. जरूरत इस बात की है की इस इलाके की परम्परगत आहार -पयैन और जोल वाली व्यवस्था को नए सिरे से, नए जमाने की जरूरत के लिहाजन - सिविल इंजीनियरिंग की नवीनतम विधा और तकनीक का इस्तेमाल करते हुए पुनर्स्थापित किया जाय.

पर आसन्न चुनौती यह है की बिहार की वर्तमान राजनीति और शासन व्यवस्था में मगध के जीवन मरण के इस प्रश्न को कैसे लाया जाय ?

1 comment:

  1. यह 'जोल वाली व्यवस्था' क्या है ?

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