मगही क्षेत्र में कबीर पंथी मठों की भरमार है। हर दो चार कोस पर मठ या उसके भग्नावशेष आज भी दिख जाते हैं। मठ में कबीरपंथी साधू - साहब जी , मठ , बाग बगीचे और खेत खलिहान सब कुछ। आस पास के ग्रामीण समुदाय में मठ की इज्जत प्रतिष्ठा। हलाँकि कहीं कहीं विवाद ग्रस्त भी।
कबीर साहब की साखियाँ और मगही में रूपांतरित गीत गाने वाले आज भी बहुतेरे मिल जाते है।
अभी हाल में कबीर साहब का एक गीत सुना - बला टली जो माला टूटा , राम नाम से पाला छूटा ।
आज के सन्दर्भ में भी कितना सहज और क्रांतिकारी भाव हैं इस गीत का ।
कबीर के विचार मध्य युग में खेतिहर समाज को कितना अपना और मुक्तिगामी लगता होगा , यह आप अंदाज लगा सकते हैं।
मगह के कर्म वीर दसरथ मांझी , समाज के हासिये पर थे । पर कबीर पंथी थे । कबीर के इस शिष्य ने कैसा अचरज कर डाला । पहाड़ को काट कर रास्ता बना डाला .अदम्य साहस का स्वामी और दृढ़ निश्चयी ।
मगह ,कबीर साहब और दसरथ मांझी के अंतर्संबंधों को उजागर करने की जरूरत है.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अच्छी जानकारी दी इस क्षेत्र के बारे में.
ReplyDeleteइस क्षेत्र की जानकारी के आभार ! दशरथ मांझी जैसे जैसे कर्मवीर को सत्-सत् नमन ! दशरथ मांझी के बारे में अख़बारों में भी काफी कुछ पढ़ा था !
ReplyDelete