Friday 23 January 2009

मगह देस की कथा

मगध का इलाका शुरुआत से ही भिन्न भिन्न मतालाम्बियों का क्षेत्र रहा है। यह क्षेत्र सिर्फ़ बौध्ध तथा जैन धर्म की जनम स्थली नहीं रही है बल्कि इतिहास के उस दौर में भी कई मान्यताओं का कहें तो अखाडा रहा है।
रूढी वादी , कर्मकांडी ब्राह्मणवाद की मुखालफत करने वाली धाराएँ।
गंगा पार ( उत्तरी बिहार के लोगों के लिए मगध में प्रयुक्त संबोधन ) के लोग पुरे मगध क्षेत्र को धार्मिक संस्कारगत दृष्टिकोण से अपवित्र मानते रहे हैं। सिमरिया घाट के कल्पवास मेले में और मिथिला के लोगों की मान्यता अनुसार गंगा के दक्षिण तट पर दह संस्कार भी वर्जित है। ऐसी ही मान्यता शादी विवाह में भी मानी जाती है।
मिथिला में किसी का उपहास उड़ना हो तो उसे मगहिया डोम की संज्ञा दी जाती है।
मिथिला में मगध की इस छवि का क्या आधार है ? इस पर शोध की जरूरत है।
वैसे कर्मकांड के स्तर पर आज भी मगध कमतर ही है।
बिहारी अस्मिता का प्रतीक बनता आस्था का महा पर्व छठ मूल रूप में मगही लोक जीवन में रचा बसा पर्व है जिसे इस इलाके के आम-ओ-खास सदियों से करते आ रहें है। मगध क्षेत्र में पाँच सूर्य मन्दिर हैं - बडगांव ( नालंदा के निकट ) पुन्यार्क ( पंडारक ) औंग्यार्क ( औंगारी - एक्न्गर सराय ) पाली और करीब करीब अपने मूल रूप में स्थित देव ( मदन पुर, औरंगाबाद ) का सूर्य मन्दिर .
जान कार कहते हैं मगध के बाहर भारत वर्ष में चुनिन्दा सूर्य मन्दिर ही है जैसे की कोणार्क ।छठ पर्व कई मामलों में विशिष्ठ है और इस पर अपने मगही पैदाईश की छाप है - कर्म काण्ड इतने सरल की भक्त और आराध्य में सीधा सम्बन्ध ।
कोई संस्कृत श्लोक और मंत्रोच्चार नहीं ।
पुजारी की कोई भूमिका नहीं।
लेकिन इस छठ पर्व को अगर आप मिथिला ,तिरहुत ,सारण या चंपारण में देखें तो पायेगें संस्कृत श्लोक , मन्त्र ,हवन , पुजारी और जटिल होते कर्मकांड क्रमशः जुड़ते जा रहे हैं ।
मगध और भोजपुर मध्य युग से लगातार शाही फौजों, युद्धों, लूटमार आदि का गवाह रहा है।बख्तियार खिलजी के घुड़सवार सैनिक जिन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय को तहस नहस किया हो, या राजा मान सिंह के नेतृत्व में मुग़ल फौज या फिर १८विन सदी में लूटती जीतती मराठा फौजें. और फिर ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ १७६४ का बक्सर युद्ध .

मगह में कबीरपंथी मठों की भरमार है। इसके खेतिहर समाज ने कबीर के भजनों में ऐसा क्या पाया की कबीर साहब के साधुओं को न सिर्फ़ अपने बीच जगह दी बल्कि रहने ,खाने के लिए खेत, खलिहान बाग बगीचे और सामाजिक मान सम्मान भी ?

मगध पर जितना विचार किया जाए उतने सवालों की गुंजाईश बढती जाती है.

7 comments:

  1. जानकारी देने का आभार....आगे भी इंतजार रहेगा आपके आलेखों का।

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  2. आपके ब्लॉग पर आकर सुखद अनुभूति हुयी.इस गणतंत्र दिवस पर यह हार्दिक शुभकामना और विश्वास कि आपकी सृजनधर्मिता यूँ ही नित आगे बढती रहे. इस पर्व पर "शब्द शिखर'' पर मेरे आलेख "लोक चेतना में स्वाधीनता की लय'' का अवलोकन करें और यदि पसंद आये तो दो शब्दों की अपेक्षा.....!!!

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  3. Rochak jaankariyon ke liye dhanyawaad.

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  4. kaushal ji, aap ka blog padhkar bachpan yaad aa gaya. aap hame team member bana lijiye to mai bhi kuch magah desh ke baare mein likhun. sujit

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  5. Aaaka Surya Mandir ke upar vichar padhkar yaad aaya ki magah mein chote surya mandir kai jagahon mein aur honge. Jaise Daudnagar (Aurangabad District) mein Surya Mandir hai. Uski aitihasik jaankari to mujhe nahin hai lekin mandir hai prachin. Mandir ke samene surya kund hai jo snan ke liye hai aur iski eet (bricks) bahut purani hai.

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  6. Kausalji, apka Magah par blog atyant rochak hai. kai vishistha jankariyan milin. Prachin Bharat ka sabse pramukh samrajya, varan, main to kahunga Bharat ke itihas ka sab se dedipyaman, aishwaryawan, kyatiwan samrajya, jisne iske itihas ko itna kuch diya; usse viksit sabhyata ka itna hrash, man ko dukhi karta hai. Maghi usiki den hai. Jaroorat hai is ke gaurav ko pahchanne ka aur aron ko iski pahchan karane ka. Is disha mein apki koshish nischay hi kabile tarif hai. Dhanyawad.
    Rajiv Ranjan Prasad Singh, Srikrishnapuri, Patna

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  7. मगध क्षेत्र का पुराना नाम किकीट प्रदेश कहलाता है।जानकारी देने केलिए आभार।

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