Friday 10 July 2009

पाटलिपुत्र -राजगृह प्राचीन मार्ग के पास बसे गाँव की प्राचीन मूर्तियाँ

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खरभैया , पटना जिले के दनियावां अंचल में स्थित एक गाँव है.यह फतुहा हिलसा रोड के सिंगरिआमा स्टेशन से पांच किलोमीटर पश्चिम स्थित है .ऊपर में दी गयी मूर्तियाँ खरभैया , और उसके निकट वर्ती गाँव , छित्तर बिगहा , सरथुआ और तोप में अलग अलग समय में मिली हैं.
इनमें से कुछ मूर्तियों की पहचान आसान है पर अन्य की पहचान शेष है. तक़रीबन सारी प्रतिमाएँ खंडित है. इनमें से कुछ मूर्ति पहले से ही गाँव के देवी स्थान में संजोग कर रखी हूई हैं और अन्यमूर्तियाँ हाल- साल में तालाब और टीलों की खुदाई में अचानक मिली जिसे नया मंदिर बनाकर रखा गया है. जिन मूर्तियों की पहचान आसान है - जैसे उमा महेश्वर , उसकी पहचान और पूजा शंकर पार्वती के रूप में और अन्य मूर्तियों की पूजा ,गोर्रैया बाबा , बरहम बाबा और देवी माता के रूप में हो रही है.ये सारी मूर्तियाँ काले पत्थर में बनी हूई हैं और पाल कालीन प्रतीत होती हैं. पर इन मूर्तियोंकी जांच परख इतिहास और पुरातात्विक नज़रिए से होना बाकी है.

3 comments:

  1. संभवतः उस क्षेत्र में प्राचीन मंदिर आदि रहे होंगे. महत्वपूर्ण जानकारी. आप ने कैसे जाना की ये पाल कालीन हो सकती हैं. कोई आधार?

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  2. Dhrti ke garbh me aaj bhi na jane kitne rahasy chhupe hue hain....

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  3. तक़रीबन आठवीं से बारहवीं सदी तक मगध पर पालवंश का शासन था.प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को पाल वंश का राजाश्रय प्राप्त था . काले पत्थर में उकेरी गयी पाल कालीन मूर्तियाँ इस इलाके में भरी पड़ी हैं. गया जिले के पूर्वी भाग में स्थित ऐतिहासिक स्थल कुकरिहार , इस काल में कांसे की खूबसूरत मूर्तियों का निर्माण केंद्र था. इन्ही ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह अनुमान है की ये मूर्तियाँ पाल कालीन हैं. लेकिन यह निष्कर्ष किसी भी तरह से अंतिम या प्रामाणिक नहीं माना जाय .इस क्षेत्र में गुप्त और मौर्या कालीन मूर्तियाँ भी मिलाती रही हैं. यह इलाका (और ये गाँव ) बुद्ध कालीन/ मौर्य कालीन पाटलिपुत्र- राजगृह ( फतुहा - हिलसा - नालंदा तथा हिलसा - तेल्हादा - गया ) राजमार्ग के किनारे बसे हैं. बुद्ध ,मौर्य ,गुप्त और पाल कालीन ऐतिहासिक अवशेष और मूर्तियों से यह इलाका भरा पड़ा है .कुछ ख्याति प्राप्त तो ज्यादातर मौजूदा दौर में गुमनाम .

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