Saturday 31 January 2009

मौर्य कालीन राजमार्ग - पाटलिपुत्र से राजगृह ( राजगीर) किधर से ?

आधुनिक पटना प्राचीन पाटलिपुत्र के अवशेष पर बसा शहर । पटना शव्द मध्ययुगीन है । चीनी यात्री ह्वेन सांग के समय तक , अर्थात ७विन सदी पाटलिपुत्र अपने उतार और उजड़ने के दौर में था । १२ वीं सदी के अंत और १३ वीं असदी में मुकम्मल तौर पर मगध की राजनैतिक और हुकूमत का केन्द्र बिहार शरीफ बन चुका था । लेकिन मुग़ल काल और खास कर अकबर के समय में राजधानी फिर पटना आ गयी। औरंगजेब के शासन काल में पटना अजीमाबाद के नाम से जान आजाता था ।
पटना १८ वीं सदी में विभिन्न कारणों से एक महत्व पूर्ण व्यापारिक केन्द्र और सामरिक महत्व का शहर बन गया .यूरोपियन कंपनियों के व्यापारिक केन्द्र इस शहर और इसके आस पास बनने लगा था। साल्ट पीटर और अफीम का बेहद फायदे वाले व्यापार की धुरी बना हुआ था पटना शहर ।
मगध और बिहार के इस दौर की कथा कभी बाद में ।
फिल हाल मुझे इस बात की जानकारी नहीं मिल रही है की मौर्या कालीन राजमार्ग , जो साम्राज्य के दो महत्वपूर्ण केन्द्रों को जोड़ता था वो किस रास्ते गुजरता था ?
क्या यह शाही मार्ग पटना के सीधे दक्षिण गौरी चक होते हुए बा रास्ता हिलसा जाता था ?
या फिर पटना से फतुहा और फिर सीधे दक्षिण पूर्व ?
या फिर कोई अन्य रास्ते से ?
अगर कोई पाठक गन इस पर प्रकाश डालें तो मैं आभारी होउंगा .

Monday 26 January 2009

दशरथ मांझी , कबीर और मगध

मगही क्षेत्र में कबीर पंथी मठों की भरमार है। हर दो चार कोस पर मठ या उसके भग्नावशेष आज भी दिख जाते हैं। मठ में कबीरपंथी साधू - साहब जी , मठ , बाग बगीचे और खेत खलिहान सब कुछ। आस पास के ग्रामीण समुदाय में मठ की इज्जत प्रतिष्ठा। हलाँकि कहीं कहीं विवाद ग्रस्त भी।
कबीर साहब की साखियाँ और मगही में रूपांतरित गीत गाने वाले आज भी बहुतेरे मिल जाते है।
अभी हाल में कबीर साहब का एक गीत सुना - बला टली जो माला टूटा , राम नाम से पाला छूटा ।
आज के सन्दर्भ में भी कितना सहज और क्रांतिकारी भाव हैं इस गीत का ।
कबीर के विचार मध्य युग में खेतिहर समाज को कितना अपना और मुक्तिगामी लगता होगा , यह आप अंदाज लगा सकते हैं।
मगह के कर्म वीर दसरथ मांझी , समाज के हासिये पर थे । पर कबीर पंथी थे । कबीर के इस शिष्य ने कैसा अचरज कर डाला । पहाड़ को काट कर रास्ता बना डाला .अदम्य साहस का स्वामी और दृढ़ निश्चयी ।
मगह ,कबीर साहब और दसरथ मांझी के अंतर्संबंधों को उजागर करने की जरूरत है.

Friday 23 January 2009

मगह देस की कथा

मगध का इलाका शुरुआत से ही भिन्न भिन्न मतालाम्बियों का क्षेत्र रहा है। यह क्षेत्र सिर्फ़ बौध्ध तथा जैन धर्म की जनम स्थली नहीं रही है बल्कि इतिहास के उस दौर में भी कई मान्यताओं का कहें तो अखाडा रहा है।
रूढी वादी , कर्मकांडी ब्राह्मणवाद की मुखालफत करने वाली धाराएँ।
गंगा पार ( उत्तरी बिहार के लोगों के लिए मगध में प्रयुक्त संबोधन ) के लोग पुरे मगध क्षेत्र को धार्मिक संस्कारगत दृष्टिकोण से अपवित्र मानते रहे हैं। सिमरिया घाट के कल्पवास मेले में और मिथिला के लोगों की मान्यता अनुसार गंगा के दक्षिण तट पर दह संस्कार भी वर्जित है। ऐसी ही मान्यता शादी विवाह में भी मानी जाती है।
मिथिला में किसी का उपहास उड़ना हो तो उसे मगहिया डोम की संज्ञा दी जाती है।
मिथिला में मगध की इस छवि का क्या आधार है ? इस पर शोध की जरूरत है।
वैसे कर्मकांड के स्तर पर आज भी मगध कमतर ही है।
बिहारी अस्मिता का प्रतीक बनता आस्था का महा पर्व छठ मूल रूप में मगही लोक जीवन में रचा बसा पर्व है जिसे इस इलाके के आम-ओ-खास सदियों से करते आ रहें है। मगध क्षेत्र में पाँच सूर्य मन्दिर हैं - बडगांव ( नालंदा के निकट ) पुन्यार्क ( पंडारक ) औंग्यार्क ( औंगारी - एक्न्गर सराय ) पाली और करीब करीब अपने मूल रूप में स्थित देव ( मदन पुर, औरंगाबाद ) का सूर्य मन्दिर .
जान कार कहते हैं मगध के बाहर भारत वर्ष में चुनिन्दा सूर्य मन्दिर ही है जैसे की कोणार्क ।छठ पर्व कई मामलों में विशिष्ठ है और इस पर अपने मगही पैदाईश की छाप है - कर्म काण्ड इतने सरल की भक्त और आराध्य में सीधा सम्बन्ध ।
कोई संस्कृत श्लोक और मंत्रोच्चार नहीं ।
पुजारी की कोई भूमिका नहीं।
लेकिन इस छठ पर्व को अगर आप मिथिला ,तिरहुत ,सारण या चंपारण में देखें तो पायेगें संस्कृत श्लोक , मन्त्र ,हवन , पुजारी और जटिल होते कर्मकांड क्रमशः जुड़ते जा रहे हैं ।
मगध और भोजपुर मध्य युग से लगातार शाही फौजों, युद्धों, लूटमार आदि का गवाह रहा है।बख्तियार खिलजी के घुड़सवार सैनिक जिन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय को तहस नहस किया हो, या राजा मान सिंह के नेतृत्व में मुग़ल फौज या फिर १८विन सदी में लूटती जीतती मराठा फौजें. और फिर ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ १७६४ का बक्सर युद्ध .

मगह में कबीरपंथी मठों की भरमार है। इसके खेतिहर समाज ने कबीर के भजनों में ऐसा क्या पाया की कबीर साहब के साधुओं को न सिर्फ़ अपने बीच जगह दी बल्कि रहने ,खाने के लिए खेत, खलिहान बाग बगीचे और सामाजिक मान सम्मान भी ?

मगध पर जितना विचार किया जाए उतने सवालों की गुंजाईश बढती जाती है.

Wednesday 21 January 2009

मगही की मिठास और पहचान

प्राचीन मगध साम्रज्य की ह्रदय स्थली वर्तमान बिहार और झारखंड के पटना , गया ,हजारीबाग ,पलामू और रांची क सुदूर आदिवासी अंचल तक बोली जाने वाली भाषा मगही ।
भौगोलिक फैलाव - पूर्व में किउल नदी तक , पश्चिम में सोनभद्र नदी तक और उत्तर में गंगा तट तक । दक्षिण में सुदूर आदिवासी अंचल तक।
सरगुजा की बोली और पूर्वी छत्तीस गढ़ी भी मगही की बहन ही लगती है।
बोलने वालों की संख्या लगभग ४ करोड़ ।
यह मगध का वह क्षेत्र है जहाँ कम से कम पिछले २५०० साल से लगातार स्थाई खेती हो रही है। ग्रामीण और कृषि आधारित सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था।
बड़े बड़े साम्राज्यों के उथ्हान पतन ,
मगध साम्राज्य के उत्कर्ष और वैभव का प्रतीक राजगृह और प्राचीन पाटलिपुत्र ,
भगवान् बुद्ध की कर्म भूमि ,
अजात शत्रु और महान अशोक और चन्द्रगुप्त मौर्य , ज्ञानी चाणक्य और पाटलिपुत्र में रोमन दूत सेलूकस निकेतर ,हुवें सांग और फाहयान की भ्रमण स्थली
मगध की भाषा है मगही ।
वर्तमान बिहार शरीफ जो बिहार ही नहीं भारत में इस्लामका शुरूआती ठौर रहा है। नालंदा के विश्व प्रसिद्द महान विश्वविदयालय की चाहर दिवारी के लगे बोली जाने वाली भाषा मगही।
वर्तमान मगही अपने में न जाने कितने फारसी और अंग्रेजी के शव्दों को समाये हुए है।
लेकिन वर्तमान में पहचान और सम्मान से मरहूम । सनद रहे की बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतिश कुमार की मातृभाषा मगही ही है .
मगध क्षेत्र की तमाम विशिष्ट तायों के लिए कितने अनूठे शब्दों का भण्डार है इसमें .
मगध कृषि प्रधान क्षेत्र है।
पुनपुन तथा फल्गु ( बुदध की तपो स्थली निरंजना नदी ) और इसकी सहायक नदियों और उनसे निकाल कर बनाई गयी अनगिनत पेएन और आहार से सिंचित , अपने मेहनती किसानों और धान की खेती के लिए महशूर ।
मगही पान और १९ सदी में इंग्लैंड में मशहूर पटना राइस की जन्मस्थली .
सदियों पूर्व मगधवासियों द्वारा सामुदायिक श्रम से मीलों दूर तक जाने वाली पेएन और आहार की श्रंखला बनाई गयी .सिंचाई की इस विधा ने खेती को बढावा दिया और दिया एक सुदृढ़ आर्थिक और सामाजिक आधार जिस पर मगध साम्राज्य अपने उत्कर्ष और वैभव को प्राप्त किया।
मगध क्षेत्र की इस पुरातन और कारगर सिंचाई विधा की जानकारी बाहर में कम ही है। यह विषय शोध का इंतज़ार कर रहा है .
चाहें तो आप गया शहर की गलियों में घूमते हुए वहां के मशहूर तिलकूट और मगही की मिठास का एक साथ आनंद ले सकते है।